- होली पर होती है 3.60 करोड़ लीटर पानी की बर्बादी

- 70 से 90 हजार किलो जलती हैं लकडि़या

Meerut : क्या आप जानते हैं कि होली पर किस हद तक पानी की बर्बादी होती है। जानते हैं कि पेड़ों को काटकर आपका लकड़ी जलाना कितना नुकसान दायक है। तेंदुए की दस्तक भी लगातार कम हो रहे जंगलों का नतीजा ही थी। वहीं सिटी में पानी की किल्लत भी बड़ी समस्या है, जिसके पीछे कहीं न कहीं हमारा खुद का हाथ है।

फ्.म्0 करोड़ लीटर पानी बर्बाद

बेशक दुनिया का दो तिहाई हिस्सा पानी से सराबोर हो, लेकिन इसके बावजूद भी सिटी में पीने का पानी की किल्लत हर जगह है, गर्मी बढ़ते ही वह समस्या और भी विकराल हो जाती है। वहीं होली का त्योहार आते ही पानी की इतनी बर्बादी होती है, जिससे पूरे दो दिन की प्यास बुझाई जा सकती है। होली के दिन जल निगम को अपनी सप्लाई भी तीन गुना करनी पड़ती है। पेयजल अधिकारी सतीश शर्मा ने बताया यदि हर व्यक्ति अबीर-गुलाल से होली खेले तो लगभग 90 लीटर पानी बचा सकता है। क्योंकि होली खेलने में एक व्यक्ति ख्भ् से फ्0 लीटर और खेलने के बाद म्0 लीटर पानी बर्बाद करता है। अनुमान है कि प्रत्येक व्यक्ति 90 लीटर पानी के हिसाब से लगभग चार लाख लोग होली खेल रहे हैं तो फ् करोड़ म्0 लाख लीटर पानी बचाया जा सकता है। जिससे पूरे सिटी को एक दिन की पानी सप्लाई हो सकती है।

बर्बाद होती है लकडि़यां

अब जरा यह भी बता दें कि आखिरकार आप होली पर कितनी सारी लकड़ी यूं ही जला देते हैं। होली पर आप 900 कुंतल तक लकड़ी बर्बाद कर रहे हैं। यदि हम आंकड़ों को गुणा करें तो लगभग 70 हजार किलो से लेकर 90 हजार किलो तक की लकड़ी हर साल होली पर जलाई जाती है। वनरक्षक विभाग अधिकारी ललित वर्मा के अनुसार होली पर हर साल 90 कुंतल तक की लकड़ी जलना बहुत ही चिंताजनक बात है।

ख्फ्भ्8 स्थानों पर होली दहन

अगर 80 के दशक की बात करें तो उस समय 800 स्थानों पर होली जलती थी। आज मेरठ में लगभग ख्ब्00 जगह पर लकड़ी का दहन होने लगा है। पंडित अरुण शास्त्री के अनुसार पुराने जमाने में घर-घर से लकड़ी लेकर होलिका जलाने की प्रथा थी। लेकिन आज वो प्रथा खत्म हो गई है। यहीं कारण है कि लोग लकड़ी जलाने के लिए पेड़ों का कटान करने लगे हैं।

भयंकर अंजाम

हालांकि पेड़ों के कटान पर रोक के बावजूद जंगल लगातार खत्म हो रहे हैं, जिसका भयंकर परिणाम हमने सिटी में तेंदुए की दस्तक के रूप में देखा है। प्रगति विज्ञान क्लब के सदस्य दीपक शर्मा का कहना है कि यदि लगातार इसी तरह वृक्षों का कटान होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब जंगली जानवर भी शहर की आबादी में बसने लगेंगे।

जल ही जीवन है

जल ही जीवन है। अभी तक इस नारे से अंजान हम इतना नहीं जानते कि आखिर जल हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। आखिरकार पानी को बचाने के लिए भी आप खुद ही सहयोग कर सकते है। आइए जानते है कैसे

- रंगों की जगह अबीर गुलाल से ही होली खेले, क्योंकि गाढ़े रंगों को उतराने में डबल पानी की बर्बादी होती है, जबकि गुलाल को साफ करने में इतना पानी नही लगता।

- अगर गिली होली खेल रहे है, तो आप पहले से ही तेल या फिर कुछ ऐसा लगाकर रखे। ताकि ज्यादा रंग न चढ़े इससे हम पानी बचा सकते है।

- सिर में तेल लगाने से रंग या गुलाल कुछ भी हो सिर में चिपक जाता है, जिसे निकालने में ही काफी पानी बर्बाद हो जाता है। इसलिए सिर में तेल बिल्कुल न लगाए। इसकी जगह सिर को ढककर होली खेले, या फिर सिर में मेहंदी लगा ले। रंग नहीं चढे़गा।

- अगर गिली होली खेलने का शौक भी हो। तो आप पानी में प्राकृतिक चीजों जैसे, लाल रंग के लिए चुकंदर का उबला पानी, पीले रंग के लिए गेंदे को फूलों को उबालकर डाले। इससे आपका शौक भी पूरा हो जाएगा। साथ ही कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होगा और आपका पानी भी बचेगा।

लकड़ी को बचाएं

- लकड़ी को बचाने के लिए हमें हर गली-गली मोहल्ले-मोहल्ले में न जलाकर किसी एक ही जगह पर जलाए। ताकि अलग- अलग जगह की लकड़ी बचाई जा सके।

- लकड़ी की जगह उपलों का प्रयोग करे ताकि लकड़ी की बचत हो सके।

- घर के खराब मैटिरीयल को या फिर कागज को थोड़ी सी लकड़ी के साथ जलाए। ताकि लकड़ी कम से कम जलाई जाए।

वन विभाग की ओर से समय-समय पर लोगों को जानकारी देने के लिए अभियान चलाए गए है। वैसे तो सरकार द्वारा भी समय-समय पर लोगों के वृक्ष काटने पर रोक लगाई जाती है। बावजूद इसके भी लगातार वृक्ष कट रहे है।

-ललित वर्मा, वनसंरक्षक अधिकारी

पानी को बचाने के लिए सरकार की ओर से तो काफी तरह के जागरुकता अभियान होते है। मगर इतने प्रयासों के बाद भी कोई कुछ नहीं कर पाता है।

-सतीश शर्मा, पेयजल अधिकारी